दिल में हूक उठे, तब, कोई कविता लिखे,
ज्यूँ, कोयल कूक उठे!
ज्यूँ रोगी मन, योगी सा हुआ!
वो नीर लिए, अपनी ही, पीड़ लिखे,
उलझी सी, जंजीर लिखे,
खुद रोए, खुद हँसे!
वो कविता लिखे, ज्यूँ, कोयल कूक उठे!
शब्द-शब्द, हों कंपित,
हों, मुक्त-आकाश, रक्त-रंजित,
वो मन के, खंड-खंड, भू-खंड लिखे,
ढ़हती सी, हिमखंड लिखे,
रक्त बहे, शब्द हँसे!
वो कविता लिखे, ज्यूँ, कोयल कूक उठे!
इक, प्यासा एहसास,
जागा हर दर्द, बड़ा ही खास,
सौ-सौ बार, अनसुन मनुहार लिखे,
अनवरत, वो गुहार लिखे,
पढ़-पढ़, खुद हँसे!
दिल में हूक उठे, तब, कोई कविता लिखे,
ज्यूँ, कोयल कूक उठे!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
अति सुंदर रचना बधाई आपको आदरणीय
ReplyDeleteप्रेरक टिप्पणी हेतु विनम्र आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया शकुन्तला जी।
Deleteबहुत खूब ।
ReplyDeleteवियोगी होगा पहला कवि
आह से उपजा होगा गान
उमड़ कर आंखों से चुपचाप
बही होगी कविता अनजान ।
पंत जी की ये पंक्तियां याद आ गयीं।
कहाँ आदरणीय पंत और कहाँ मैं, ...
Deleteफिर भी मेरी रचना को इतना सम्मान देने हेतु आपका विनम्र आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया स॔गीता जी।
बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आँचल जी....
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 08 अप्रैल 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार आदरणीया दी।
Deleteशब्द-शब्द, हों कंपित,
ReplyDeleteहों, मुक्त-आकाश, रक्त-रंजित,
वो मन के, खंड-खंड, भू-खंड लिखे,
ढ़हती सी, हिमखंड लिखे,
रक्त बहे, शब्द हँसे!---बहुत खूबसूरत शब्द हैं...
प्रेरक टिप्पणी हेतु विनम्र आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय संदीप जी
Deleteमेरी बात संगीता जी ने कहा दी। वेदना का सुंदर सरगम।
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीय विश्वमोहन जी
Deleteकवि के दिल का हाल चंद शब्दों में बड़ी ही खूबसूरती से आपने बयान कर दिया है !
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अनीता जी।
Deleteकम शब्दों में कहें तो शानदार अद्वितीय लेखन सर
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया प्रीति जी। हार्दिक स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर।।।।
Delete