Saturday, 17 April 2021

सब्र

यूँ, सब्र के धागों को तुम तोड़ो ना!

हो, कितनी दूर, हकीकत, 
पर, मुमकिन है, सच को पा लें हम,
यूँ ही, खो जाने की बातें,
अब और करो ना!

सच से, यूँ ही आँखें तुम फेरो ना!

अन्धियारा, छा जाने तक,
चल, बुझता इक दीप, जला लें हम,
यूँ ही, घबराने की बातें, 
अब और करो ना!

यूँ ही, आशा का दामन छोड़ो ना!

जाना है, उन सपनों तक,
हकीकत ना बन पाए, जो अब तक,
यूँ, मुकर जाने की बातें,
अब और करो ना!

जज्ब से, जज्बातों को मोड़ो ना!

हो, कितनी दूर, हकीकत,
यूँ सच को, झुठलाए कोई कब तक,
यूँ ही, बैठ जाने की बातें,
अब और करो ना

यूँ, जीवन से आँखें तुम फेरो ना!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

14 comments:

  1. हो, कितनी दूर, हकीकत,
    यूँ सच को, झुठलाए कोई कब तक,
    यूँ ही, बैठ जाने की बातें,
    अब और करो ना...वाह अतिउत्तम

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया शकुन्तला जी

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  2. अन्धियारा, छा जाने तक,
    चल, बुझता इक दीप, जला लें हम,
    यूँ ही, घबराने की बातें,
    अब और करो ना!बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अनुराधा जी

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना आज शनिवार १७ अप्रैल २०२१ को शाम ५ बजे साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया श्वेता जी

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  4. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-04-2021) को चर्चा मंच   "ककड़ी खाने को करता मन"  (चर्चा अंक-4040)  पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
    --

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मयंक सर

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  5. अन्धियारा, छा जाने तक,
    चल, बुझता इक दीप, जला लें हम,
    यूँ ही, घबराने की बातें,
    अब और करो ना!
    आशा नहीं छूटनी चाहिए । सब्र से सब मिल जाता । अच्छी रचना

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया संगीता स्वरुप जी

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  6. सुंदर प्रस्तुति.

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ओंकार जी

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  7. हो, कितनी दूर, हकीकत,
    यूँ सच को, झुठलाए कोई कब तक,
    यूँ ही, बैठ जाने की बातें,
    अब और करो ना

    प्रेरणा देती कविताएँ....

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