दूर कहीं, तुम हो,
जैसे, चाँद कहीं, सफर में गुम हो!
गैर लगे, अपना ही मन,
हारे, हर क्षण,
बिसारे, राह निहारे,
करे क्या!
देखे, रुक-रुक वो!
दूर कहीं, तुम हो,
जैसे, चाँद कहीं, सफर में गुम हो!
तन्हा पल, काटे न कटे,
जागे, नैन थके,
भटके, रैन गुजारे,
करे क्या!
ताके, तेरा पथ वो!
दूर कहीं, तुम हो,
जैसे, चाँद कहीं, सफर में गुम हो!
इक बेचारा, तन्हा तारा,
गगन से, हारा,
पराया, जग सारा,
करे क्या!
जागे, गुम-सुम वो!
दूर कहीं, तुम हो,
जैसे, चाँद कहीं, सफर में गुम हो!
संग-संग, तुम होते गर,
तन्हा ये अंबर,
रचा लेते, स्वयंवर,
करे क्या!
हारे, खुद से वो!
दूर कहीं, तुम हो,
जैसे, चाँद कहीं, सफर में गुम हो!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
संग-संग, तुम होते गर,
ReplyDeleteतन्हा ये अंबर,
रचा लेते, स्वयंवर,
करे क्या!
हारे, खुद से वो!
दूर कहीं, तुम हो,
जैसे, चाँद कहीं, सफर में गुम हो.... बहुत सुंदर रचना बधाई हो आपको आदरणीय 🌷🌹
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया....
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (14-04-2021) को ""नवसम्वतसर आपका, करे अमंगल दूर" (चर्चा अंक 4036) पर भी होगी।
ReplyDelete--
मित्रों! चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं भी नहीं हो रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है।
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भारतीय नववर्ष, बैसाखी और अम्बेदकर जयन्ती की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आभारी हूँ सर
Deleteमन विभोर करने वाली रचना, बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया....
Delete
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 14 अप्रैल 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया....
Deleteइक बेचारा, तन्हा तारा,
ReplyDeleteगगन से, हारा,
पराया, जग सारा,
करे क्या!
जागे, गुम-सुम वो!
दूर कहीं, तुम हो,
जैसे, चाँद कहीं, सफर में गुम हो!
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!!!
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय विश्वमोहन जी।
Deleteखूबसूरत पंक्तियाँ,लाजवाब अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसादर प्रणाम आदरणीय सर 🙏
बहुत-बहुत धन्यवाद आँचल जी....
Deleteमन की परतों से रिसती है उदासी जैसे रोटी बासी बेहतरीन रचना पुरुषोत्तम सिन्हा जी की
ReplyDeleteइक बेचारा, तन्हा तारा,
गगन से, हारा,
पराया, जग सारा,
करे क्या!
जागे, गुम-सुम वो!
आपकी सुन्दर सी प्रतिक्रिया हेतु आभारी हूँ आदरणीय वीरेन्द्र शर्मा जी। हमेशा ही स्वागत है इस पटल पर आपका।
Deleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ओंकार जी
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअनेक तरह से अपने विरह को शब्दों में बांधा है ... खूबसूरती से लिखे एहसास .
ReplyDeleteदूर कहीं, तुम हो,
ReplyDeleteजैसे, चाँद कहीं, सफर में गुम हो!..ये सुंदर पंक्तियां ही पूरी कविता के मोहपाश में जुड़ने का सुंदर अहसास करा रही हैं,खूबसूरत एवम् भावपूर्ण रचना ।
हृदयस्पर्शी रचना ..
ReplyDeleteचैत्र नववर्ष पर हार्दिक शुभकामनाएं 🌹🙏🌹