Friday, 2 April 2021

फितरत

फिर उनकी ही बातें, करते मर जाने पर, 
जीते जी, जो तरसे तारीफें सुनने को!

फितरत है, ये तो इन्सानों की,
मुरझा जाने पर, करते है बातें फूलों की, 
पतझड़ हो, तो हो बातें झूलों की,
उम्र भर, हो चर्चा भूलों की!

सध जाए मतलब, तो वो रब,
कौन किसी से, मिलता है, बिन मतलब,
फिकर बड़ी, इन झूठे रिश्तों की,
फिकर किसे, है अपनों की!

एक भूल, कभी, होती भारी,
कभी अवगुण लाख, पर चलती यारी,
निभती, स्वार्थ-परक तथ्यों की,
परवाह किसे, कुकृत्यों की!

फितरत है, ये ही इन्सानों की,
अपनों से अलग, तारीफें बेगानों की,
बे-रस्म बड़े, पर बातें रस्मों की,
भान कहाँ भूले कसमों की!

फिर उनकी ही बातें, करते मर जाने पर, 
जीते जी, जो तरसे तारीफें सुनने को!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

14 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 02 अप्रैल 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. इंसानी फितरत में विसंगतियों पर सटीक सृजन।
    सुंदर रचना।

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    1. विनम्र आभार आदरणीया कुसुम जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  3. जो नहीं होता सामने उसकी बातें इंसान करता है । बहुत संवेदनशीलता से लिखा आपने ।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया संगीता जी

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (04-04-2021) को   "गलतफहमी"  (चर्चा अंक-4026)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --  
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-    
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  5. फितरत है, ये ही इन्सानों की,
    अपनों से अलग, तारीफें बेगानों की,
    बे-रस्म बड़े, पर बातें रस्मों की,
    भान कहाँ भूले कसमों की!
    बेहतरीन रचना।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अनुराधा जी।

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  6. बहुत ही सुंदर सृजन हृदयस्पर्शी।
    सादर

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अनीता सैनी जी।

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  7. एक भूल, कभी, होती भारी,
    कभी अवगुण लाख, पर चलती यारी,
    निभती, स्वार्थ-परक तथ्यों की,
    परवाह किसे, कुकृत्यों की
    बहुत ही कडवी सच्चाई को उकेरती रचना पुरुषोत्तम जी |
    आजके युग में कुछ लोग बस इन्ही कुटिल अवगुणों से
    आच्छादित लोक व्यवहार से सच्चे इंसानों का दिल दुखाने से बाज़ नहीं आते | अंदर बाहर सम फ़ितरत वाले लोग हैं ही कितने आज ज़माने में | बहुत अच्छा और सच्चा लिखा आपने | सादर

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    1. आपकी व्याख्यात्मक व तथ्यपरक टिप्पणी हेतु
      विनम्र आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया रेणु जी।

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