Tuesday, 12 February 2019

मासूम शब्द

शब्दों को, खुद संस्कार तो ना आएंगे!

शब्दों का क्या? किताबों में गरे है!
किसी इन्तजार में पड़े है,
बस इशारे ही कर ये बुलाएंगे,
शब्दों को, खुद ख्वाब तो ना आएंगे,
कुंभकर्ण सा, नींद में है डूबे,
उन्हें हम ही जगाएंगे।

दूरियाँ, शब्दों से बना ली है सबने!
तड़प रहे शब्द तन्हा पड़े,
नई दुनियाँ, वो कैसे बसाएंगे,
किताबों में ही, सिमटकर रह जाएंगे,
चुन लिए है, कुछ शब्द मैनें,
उनकी तन्हाई मिटाएंगे।

वरन ये किताबें, कब्र हैं शब्दों की!
जैसे चिता पर, लेटी लाश,
जलकर, भस्म होने की आस,
न भय, न वैर, न द्वेष, न कोई चाह,
बस, आहत सा इक मन,
ये लेकर कहाँ जाएंगे।

चलो कुछ ख्वाब, शब्दों को हम दें!
संजीदगी, चलो इनमें भरें,
खुद-ब-खुद, ये झूमकर गाएंगे,
ये अ-चेतना से, खुद जाग जाएंगे,
रंग कई, जिन्दगी के देकर,
संजीदा हमें बनाएंगे।

वर्ना शब्दों का क्या? बेजान से है!
चाहो, जिस ढ़ंग में ढ़ले हैं,
कभी तीर से, चुभते हृदय में,
कभी मरहम सा, हृदय पर लगे हैं,
शब्द एक हैं, असर अनेक,
ये पीड़ ही दे जाएंगे।

शब्दों को, खुद संस्कार तो ना आएंगे?

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

27 comments:

  1. शब्दों की महिमा असीमित है इस तथ्य को खूबसूरती से सृजन में ढाला है आपने ।

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  2. वर्ना शब्दों का क्या? बेजान से है!
    चाहो, जिस ढ़ंग में ढ़ले हैं,
    कभी तीर से, चुभते हृदय में,
    कभी मरहम सा, हृदय पर लगे हैं,
    शब्द एक हैं, असर अनेक,
    ये पीड़ ही दे जाएंगे। बेहतरीन रचना आदरणीय

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  3. क्या खूब महिमा होती हैं शब्दों की आपकी रचना पढ़कर बहुत अच्छा लगा

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    1. सादर आभार आदरणीय शकुन्तला जी। बहुत-बहुत धन्यवाद ।

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (14-02-2019) को "प्रेमदिवस का खेल" (चर्चा अंक-3247) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    पाश्चात्य प्रणय दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. आदरणीय विश्वमोहन जी, बहुत-बहुत धन्यवाद ।

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  6. शब्दों का क्या? बेजान से है!
    चाहो, जिस ढ़ंग में ढ़ले हैं,
    कभी तीर से, चुभते हृदय में,
    कभी मरहम सा, हृदय पर लगे हैं,
    शब्द एक हैं, असर अनेक,
    ये पीड़ ही दे जाएंगे।
    बहुत सुंदर।

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  7. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ फरवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  8. बहुत सुन्दर पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा जी.
    शब्द जब आपकी कविताओं में ढलते हैं तो उनमें जान पड़ जाती है.

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    1. बस ऐसे ही आशीष देते रहें । बहुत-बहुत अभिनन्दन आदरणीय गोपेश जी।

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  9. अति उत्तम पुरुषोत्तम जी ।

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  10. अति उत्तम पुरुषोत्तम जी ।

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  11. वरन ये किताबें, कब्र हैं शब्दों की!
    जैसे चिता पर, लेटी लाश,
    जलकर, भस्म होने की आस,
    बेहद सशक्‍त पंक्तियां ... आभार इस उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति के लिए

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    1. सादर आभार अभिनंदन आदरणीय संजय जी।

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  12. बहुत खूब......यथार्थ .....लाजवाब आदरणीय

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय रवीन्द्र जी।

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  13. वर्ना शब्दों का क्या? बेजान से है!
    चाहो, जिस ढ़ंग में ढ़ले हैं,
    कभी तीर से, चुभते हृदय में,
    कभी मरहम सा, हृदय पर लगे हैं,
    शब्द एक हैं, असर अनेक,
    ये पीड़ ही दे जाएंगे।
    लेकिन आप के शब्दों तो जीवंत है सादर नमन

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    1. बस ऐसे ही आशीष देते रहें । बहुत-बहुत आभार अभिनन्दन आदरणीया मीना जी।

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  14. बेजान से शब्दों में असीमित जान होती है...
    बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति

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    1. सादर आभार आदरणीय सुधा जी। अभिनंदन आपका।

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