शब्दों को, खुद संस्कार तो ना आएंगे!
शब्दों का क्या? किताबों में गरे है!
किसी इन्तजार में पड़े है,
बस इशारे ही कर ये बुलाएंगे,
शब्दों को, खुद ख्वाब तो ना आएंगे,
कुंभकर्ण सा, नींद में है डूबे,
उन्हें हम ही जगाएंगे।
दूरियाँ, शब्दों से बना ली है सबने!
तड़प रहे शब्द तन्हा पड़े,
नई दुनियाँ, वो कैसे बसाएंगे,
किताबों में ही, सिमटकर रह जाएंगे,
चुन लिए है, कुछ शब्द मैनें,
उनकी तन्हाई मिटाएंगे।
वरन ये किताबें, कब्र हैं शब्दों की!
जैसे चिता पर, लेटी लाश,
जलकर, भस्म होने की आस,
न भय, न वैर, न द्वेष, न कोई चाह,
बस, आहत सा इक मन,
ये लेकर कहाँ जाएंगे।
चलो कुछ ख्वाब, शब्दों को हम दें!
संजीदगी, चलो इनमें भरें,
खुद-ब-खुद, ये झूमकर गाएंगे,
ये अ-चेतना से, खुद जाग जाएंगे,
रंग कई, जिन्दगी के देकर,
संजीदा हमें बनाएंगे।
वर्ना शब्दों का क्या? बेजान से है!
चाहो, जिस ढ़ंग में ढ़ले हैं,
कभी तीर से, चुभते हृदय में,
कभी मरहम सा, हृदय पर लगे हैं,
शब्द एक हैं, असर अनेक,
ये पीड़ ही दे जाएंगे।
शब्दों को, खुद संस्कार तो ना आएंगे?
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
शब्दों का क्या? किताबों में गरे है!
किसी इन्तजार में पड़े है,
बस इशारे ही कर ये बुलाएंगे,
शब्दों को, खुद ख्वाब तो ना आएंगे,
कुंभकर्ण सा, नींद में है डूबे,
उन्हें हम ही जगाएंगे।
दूरियाँ, शब्दों से बना ली है सबने!
तड़प रहे शब्द तन्हा पड़े,
नई दुनियाँ, वो कैसे बसाएंगे,
किताबों में ही, सिमटकर रह जाएंगे,
चुन लिए है, कुछ शब्द मैनें,
उनकी तन्हाई मिटाएंगे।
वरन ये किताबें, कब्र हैं शब्दों की!
जैसे चिता पर, लेटी लाश,
जलकर, भस्म होने की आस,
न भय, न वैर, न द्वेष, न कोई चाह,
बस, आहत सा इक मन,
ये लेकर कहाँ जाएंगे।
चलो कुछ ख्वाब, शब्दों को हम दें!
संजीदगी, चलो इनमें भरें,
खुद-ब-खुद, ये झूमकर गाएंगे,
ये अ-चेतना से, खुद जाग जाएंगे,
रंग कई, जिन्दगी के देकर,
संजीदा हमें बनाएंगे।
वर्ना शब्दों का क्या? बेजान से है!
चाहो, जिस ढ़ंग में ढ़ले हैं,
कभी तीर से, चुभते हृदय में,
कभी मरहम सा, हृदय पर लगे हैं,
शब्द एक हैं, असर अनेक,
ये पीड़ ही दे जाएंगे।
शब्दों को, खुद संस्कार तो ना आएंगे?
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
शब्दों की महिमा असीमित है इस तथ्य को खूबसूरती से सृजन में ढाला है आपने ।
ReplyDeleteहृदयतल से आभार आदरणीय मीना जी।
Delete
ReplyDeleteवर्ना शब्दों का क्या? बेजान से है!
चाहो, जिस ढ़ंग में ढ़ले हैं,
कभी तीर से, चुभते हृदय में,
कभी मरहम सा, हृदय पर लगे हैं,
शब्द एक हैं, असर अनेक,
ये पीड़ ही दे जाएंगे। बेहतरीन रचना आदरणीय
हृदयतल से आभार आदरणीय अनुराधा जी।
Deleteक्या खूब महिमा होती हैं शब्दों की आपकी रचना पढ़कर बहुत अच्छा लगा
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय शकुन्तला जी। बहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (14-02-2019) को "प्रेमदिवस का खेल" (चर्चा अंक-3247) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
पाश्चात्य प्रणय दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभारी हूँ .....
Deleteबहुत खूब!!!
ReplyDeleteआदरणीय विश्वमोहन जी, बहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteशब्दों का क्या? बेजान से है!
ReplyDeleteचाहो, जिस ढ़ंग में ढ़ले हैं,
कभी तीर से, चुभते हृदय में,
कभी मरहम सा, हृदय पर लगे हैं,
शब्द एक हैं, असर अनेक,
ये पीड़ ही दे जाएंगे।
बहुत सुंदर।
हृदयतल से आभार आदरणीय ज्योति जी।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ फरवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सादर आभार आदरणीय श्वेता जी।
Deleteबहुत सुन्दर पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा जी.
ReplyDeleteशब्द जब आपकी कविताओं में ढलते हैं तो उनमें जान पड़ जाती है.
बस ऐसे ही आशीष देते रहें । बहुत-बहुत अभिनन्दन आदरणीय गोपेश जी।
Deleteअति उत्तम पुरुषोत्तम जी ।
ReplyDeleteआभार अभिनंदन आदरणीय दीपशिखा जी।
Deleteअति उत्तम पुरुषोत्तम जी ।
ReplyDeleteवरन ये किताबें, कब्र हैं शब्दों की!
ReplyDeleteजैसे चिता पर, लेटी लाश,
जलकर, भस्म होने की आस,
बेहद सशक्त पंक्तियां ... आभार इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति के लिए
सादर आभार अभिनंदन आदरणीय संजय जी।
Deleteबहुत खूब......यथार्थ .....लाजवाब आदरणीय
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय रवीन्द्र जी।
Deleteवर्ना शब्दों का क्या? बेजान से है!
ReplyDeleteचाहो, जिस ढ़ंग में ढ़ले हैं,
कभी तीर से, चुभते हृदय में,
कभी मरहम सा, हृदय पर लगे हैं,
शब्द एक हैं, असर अनेक,
ये पीड़ ही दे जाएंगे।
लेकिन आप के शब्दों तो जीवंत है सादर नमन
बस ऐसे ही आशीष देते रहें । बहुत-बहुत आभार अभिनन्दन आदरणीया मीना जी।
Deleteबेजान से शब्दों में असीमित जान होती है...
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब प्रस्तुति
सादर आभार आदरणीय सुधा जी। अभिनंदन आपका।
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