यूँ तो इक, वहम ने ही बनाया ये फसाना!
यूँ भी, है न कुछ चाहत में हासिल!
यूँ ही मुस्कुराना, या यूँ खुद ही रूठ जाना!यूँ भी, है न कुछ चाहत में हासिल!
यूँ न था, मेरी आदत में शामिल!
यूँ तो न था, किसी पर ऐतबार,
यूँ ही, हुआ था एक बार,
यूँ ही, करता रहा मैं बार-बार,
यूँ ही चला, छोड़ कर वो किस्से हजार!
यूँ न था,आसाँ मेरा वादों से मुकर जाना!
यूँ न था, ये मेरी फितरत में शामिल!
यूँ तो था, ये हँसी खेल उनका,
यूँ था, चाह में मैं ही रुका,
यूँ ही, मिला बस एक धोखा,
यूँ ही छेड़कर, तार दिल के वो चला!
यूँ तो इक, वहम ने ही बनाया ये फसाना!
यूँ भी, है न कुछ चाहत में हासिल!
यूँ, गुजरता न मैं उस राह पर,
यूँ, रुका मैं इक आह पर,
यूँ ही, मासूम सी निगाह पर,
यूँ तो रहा, मेरी हाल से वो बेखबर!
यूँ तिल-मिलाना, बेसबर हो लौट जाना!
यूँ ही था, इस इबादत में शामिल!
यूँ तो, कागजों सी है जिन्दगी,
यूँ ये, रद्दी हुई और जली,
यूँ ही, या आँसूओं से ये गली,
यूँ ही, है भीगी, बुझी सी ये जिन्दगी!
यूँ ही मुस्कुराना, या यूँ खुद ही रूठ जाना!
यूँ न था, मेरी आदत में शामिल!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
बहुत ही बेहतरीन रचना
ReplyDeleteआभार आदरणीया अनुराधा जी।
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ReplyDeleteयूँ तो न था, किसी पर ऐतबार,
यूँ ही, हुआ था एक बार,
यूँ ही, करता रहा मैं बार-बार,
यूँ ही चला, छोड़ कर वो किस्से हजार!...बहुत ही सुन्दर आदरणीय
सादर
आभार आदरणीया अनीता जी।
Deleteयूँ न था,आसाँ मेरा वादों से मुकर जाना!
ReplyDeleteयूँ न था, ये मेरी फितरत में शामिल!
बहुत ही सुन्दर...
आहार आदरणीया सुधा देवरानी जी।
Deleteयूँ तो, कागजों सी है जिन्दगी,
ReplyDeleteयूँ ये, रद्दी हुई और जली,
यूँ ही, या आँसूओं से ये गली,
यूँ ही, है भीगी, बुझी सी ये जिन्दगी!
बहुत खूब..... सादर नमन
आभार आदरणीया कामिनी जी। अभिनंदन ।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-02-2019) को "आईने तोड़ देने से शक्ले नही बदला करती" (चर्चा अंक-3258) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुक्रिया आदरणीय मयंक जी।
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