था बेहद ही अजीज वो,
था दिल के बेहद ही करीब वो,
चुपके से, दुनियाँ से छुपके,
पुकारा था उसे मैनें,
डग भरता वक्त,
बेखौफ आया मेरे करीब,
बनकर मेरा अजीज,
तोड़ कर ऐतबार, छोड़ शरम,
मुझसे ही, करता रहा साजिश!
वक्त की है साजिशें, या है बेवजह की ये रंजिशें!
पनाहों में अपने लेकर,
आगोश में, हौले से भर कर,
सहलाता है हँसकर,
फेरकर रुख, करवटें बदल,
रचता है साजिश,
ये रंग, ये रंगत, ये कशिश,
मेरी उम्र पुरकशिश,
पल-पल, मेरे इक-इक क्षण,
मुझसे छीन, ले जाता है संग!
वक्त की है साजिशें, या है बेवजह की ये रंजिशें!
खफा हूँ मैं वक्त से,
रास कहाँ आया है वो मुझे,
टूटा है मेरा भरम,
उसे न आया मुझपे रहम,
रहा मेरा वहम,
कि वक्त का है करम!
जुदा हुआ मुझसे,
व्यर्थ गई है सारी कोशिशें,
अब भी है, वक्त से मेरी रंजिशें!
वक्त की है साजिशें, या है बेवजह की ये रंजिशें!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (06-02-2019) को "बहता शीतल नीर" (चर्चा अंक-3239) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय मयंक जी, ह्रदय से आभार ।
Deleteबेहतरीन रचना आदरणीय
ReplyDeleteआदरणीया अभिलाषा जी, बहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteबहुत कठिन है वक़्त की साज़िशों को वक़्त पर समझना। केवल एक दर्द ही राह जाता है साथ में। लाज़वाब अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआदरणीय कैलाश जी, ब्लाॅग पर स्वागत है आपका । आपकी अर्थपूर्ण प्रतिक्रिया ने रचना को सार्थक बना दिया है। बहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteबेहद खूबसूरत रचना। आपको बधाई।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय नितीश जी। स्वागत है आपका ।
Deleteवाह बहुत ही बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय अनुराधा जी।
Deleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय अमित जी।
ReplyDeleteबहुत ही शानदार और सराहनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteपुनः स्वागत है आदरणीय संजय भास्कर जी। प्रेरक शब्दों हेतु आभारी हूँ ।
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