Thursday, 28 February 2019

चल कहीं और

तलाश-ए-सुखन, ऐ दिल, चल कहीं और!

हवाओं में घुली, ये कैसी है घुटन,
फिज़ाओं में कैसी, घुल रही है चुभन,
ये जुनून, ये चीखें, ये मातम,
कराहते बदन, असह्य मन का ये शोर,
कैसा है दौर, ये कैसा है दौर!

तलाश-ए-सुखन, ऐ दिल, चल कहीं और!

हैरान हूँ बस, इन्सानी अक्ल पे,
भेड़िया हैं वो, इन्सानों की शक्ल में,
नादान नहीं, वो सब हैं जानते,
बस जुनून-ए-सर, आतंक का है ठौर,
कैसा है दौर, ये कैसा है दौर!

तलाश-ए-सुखन, ऐ दिल, चल कहीं और!

बस ये सोचकर, है बेचैन मन,
वो अपनी जान के, खुद हैं दुश्मन,
पिस जाएंगे, शेष निरीह जन,
तड़पाएंगे हमें, टूटी चूड़ियों का शोर,
कैसा है दौर, ये कैसा है दौर!

तलाश-ए-सुखन, ऐ दिल, चल कहीं और!

फिर ना रंगेंगी, सूनी सी मांगें,
यूँ ही जगेगी, शुन्य ताकती आँखे,
रोते कटेंगी, वो जागती रातें,
सिसकियाँ, झिंगुर संग करेगीे शोर,
कैसा है दौर, ये कैसा है दौर!

सह जाएं सब, वो होंगे कोई और,
तलाश-ए-सुखन, ऐ दिल, चल कहीं और!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

14 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 01 मार्च 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत सुन्दर रचना आदरणीय
    सादर

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  3. वाह!!पुरुषोत्तम जी ,बहुत खूब!!

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-03-2019) को "पापी पाकिस्तान" (चर्चा अंक-3262)) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. फिर ना रंगेंगी, सूनी सी मांगें,
    यूँ ही जगेगी, शुन्य ताकती आँखे,
    रोते कटेंगी, वो जागती रातें,
    सिसकियाँ, झिंगुर संग करेगीे शोर,
    कैसा है दौर, ये कैसा है दौर!
    बहुत सुंदर रचना

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  6. बहुत ख़ूब पुरुषोत्तम सिन्हा जी !
    बहते हुए खून को देख कर जिसके दिल को सुकून मिलता आता हो, जिसे शोर-ए-मातम, शहनाई जैसा मीठा और मुबारक लगता हो, उस से तो दूर जाने में ही भलाई है. पर मुश्किल यह है कि हम कहीं भी चले जाएं, ऐसे वहशी दरिन्दे हर जगह मिलेंगे.

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  7. बहुत ही सुन्दर रचना....

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