Sunday, 3 February 2019

चलते रहो

चलते रहो, तुम चलो अनन्त काल तक,
बस हाथों में, इक प्रखर मशाल हो।

अवसान हो, सांध्य काल हो,
नव-विहान हो, क्षितिज लाल हो,
धूल-धूल, गोधुलि काल हो,
रात्रि प्रहर, क्रुर काल हो,
चलते चलो, कोई ॠतुकाल हो!

चलते रहो, तुम चलो अनन्त काल तक,
बस हाथों में, इक प्रखर मशाल हो।

वियावान हो, या सघन जाल हों,
सामने तेरे खड़ा, कोई महाकाल हो,
राहों में कहीं, पर्वत विशाल हो,
भुज मे तेरे, ना कोई ढाल हो,
चलते चलो, कि लक्ष्य निढ़ाल हो!

चलते रहो, तुम चलो अनन्त काल तक,
बस हाथों में, इक प्रखर मशाल हो।

अवरोध हो, बाधा विकराल हो,
अन्तर्मन कहीं, कोई भी मलाल हो,
पथ पर, बहेलियों के जाल हो,
कठिन कितने ही, सवाल हो,
चलते चलो, पस्त तेरे न हाल हो!

चलते रहो, तुम चलो अनन्त काल तक,
बस हाथों में, इक प्रखर मशाल हो।

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

16 comments:

  1. वाह वाह.अद्भुत.खूबसूरत प्रेरक रचना . 👌 👌 👌

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (04-02-2019) को चलते रहो (चर्चा अंक-3237) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मयंक जी।

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 03/02/2019 की बुलेटिन, " मजबूत रिश्ते और कड़क चाय - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय शिवम जी।

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  4. वियावान हो, या सघन जाल हों,
    सामने तेरे खड़ा, कोई महाकाल हो,
    राहों में कहीं, पर्वत विशाल हो,
    भुज मे तेरे, ना कोई ढाल हो,
    चलते चलो, कि लक्ष्य निढ़ाल हो!...बेहतरीन सृजन आदरणीय
    सादर

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अनीता जी।

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  5. सुंदर रचना है ...
    सच कहा है प्रखरता हर बात में हो तो वो मशाल ही है ... हर तम को दूर करती ... प्रेरितकरती ...

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    1. बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय ओंकार जी। आभार।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ज्योति खरे जी।

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  8. ख्वाहिशों को अच्छी तरह सहेजा आपने अपनी कविता में......बहुत सुन्दर

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    1. स्वागत है आदरणीय संजय भास्कर जी। प्रेरक शब्दों हेतु आभारी हूँ ।

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