वो बोलती रही, कल-कल झरता रहा झरना!
थी कुछ ऐसी, उसके स्वर की संरचना,
मुग्ध हुए थे सारे, स्तब्ध हुए तारे,
उस पल तो हम भी थे, खुद को हारे,
कोयल, भूल गई थी कूकना,
मुखर हो चली थी, साधारण सी रचना!
वो बोलती रही, कल-कल बहती रही रचना!
नव-पल्लव बन, पल्लवित हुए थे स्वर,
महुए की रस में, प्लावित वे स्वर,
उनकी अधरों पर, आच्छादित होकर,
स्वर, सीख रहे थे इठलाना,
सुघड़ हो चली थी, साधारण सी रचना!
वो बोलती रही, इठलाती बहती रही रचना!
मोहक है वो स्वर, उस कंठ है कलरव,
स्वर ने पाया, उस कंठ का वैभव,
डूबे आकण्ठ, उनकी जादू में खोकर,
स्वर, जान गई थी मुस्काना,
प्रखर हो चली थी, साधारण सी रचना!
वो बोलती रही, इतराती बहती रही रचना!
अब मचलकर, बोल उठे वो गूंगे स्वर,
सँवर कर, डोल रहे वो गूंगे स्वर,
झरने सी, कल-कल बहती मन पर,
स्वर ने था, जीवन को जाना,
जीवन्त हो चली , साधारण सी रचना!
वो बोलती रही, कल-कल झरता रहा झरना!
जीती रही, साधारण सी अंकित रचना!
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अनुराधा जी।
Deleteअब मचलकर, बोल उठे वो गूंगे स्वर,
ReplyDeleteसँवर कर, डोल रहे वो गूंगे स्वर,
झरने सी, कल-कल बहती मन पर,
स्वर ने था, जीवन को जाना,
जीवन्त हो चली , साधारण सी रचना!...बेहतरीन रचना आदरणीय
सादर
आभारी हूँ आदरणीय अनीता जी। अभिनंदन व शुभकामनाएं ।
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 21 फरवरी 2019 को प्रकाशनार्थ 1315 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
सादर आभार आदरणीय रवीन्द्र जी।
Deleteबहुत ही सुन्दर...
ReplyDeleteशुक्रिया आभार आदरणीय सुधा जी।
Delete