मयूर ने जब-जब पंख फैलाए,
नृत्य क्रीड़ा कर संगिनी को रिझाए,
अरण्य में तुम याद आए, याद तुम आए!
मयुरी दूर खड़ी इठलाए,
भाव भंगिमा कर करतब दिखलाए,
तुम याद आए तब अरण्य मे, तुम याद आए!
शावक हिरण पक्षी मदमाए,
कचनार कली के मुखमंडल खिल आए,
बरबस अरण्य में तुम याद आए, याद तुम आए!
खिली धूप फिर रंग बिखराए,
कलकल करती झरणों ने राग सुनाए,
याद तुम आए अरण्य में, बार-बार तुम याद आए।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
४ फरवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया ।
Deleteबहुत ख़ूबसूरत और बहुत रूमानी गीत !
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय गोपेश जी।
Deleteबहुत सुंदर ... सादर नमस्कार
ReplyDeleteशुक्रिया आभार आदरणीय कामिनी जी।
Deleteबहुत खूब ....सुंदर रचना आदरणीय
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन...
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