नि:स्तब्ध रात्रि
अन्ध तिमिर अलबेला,
अन्ध तिमिर अलबेला,
चाँदनी सौं नभ
रंजित सुसमित यह वेला,
रंजित सुसमित यह वेला,
विकल प्राण दो
मिलने को आतुर ।
पूरित पूर्णिमा
मुखरित सी छवि,
बिखरी नर्म सी चाँदनी,
निखरी निखरी,
मलिन मुख काँति।
लहरों के घर,
जा रही सर्द सी रौशनी,
इन लमहों में,
छू रही हैं सर्द सी हवायें
तन्हा सा मन,
तन्हा लग रहे अब अपने साये
याद कोई तब आए.....
मिलने को आतुर ।
पूरित पूर्णिमा
मुखरित सी छवि,
बिखरी नर्म सी चाँदनी,
निखरी निखरी,
मलिन मुख काँति।
लहरों के घर,
जा रही सर्द सी रौशनी,
इन लमहों में,
छू रही हैं सर्द सी हवायें
तन्हा सा मन,
तन्हा लग रहे अब अपने साये
याद कोई तब आए.....
बहुत अच्छा चित्रण किया है आपने ।
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