Saturday, 6 February 2016

दहलीज में बिटिया

घुटन कैसी इस दहलीज के अन्दर,
चेहरे की सुन्दरता कुचल दी गई हो जैसे,
मासूमियत उसकी मसली गई है शायद,
नजर अंदाज कर दिए गए हैं गुण सारे।

जीवन भारी इस दहलीज के अन्दर,
जीने की आजादी छीन ली गई हो जैसे,
सुन्दरता उसके मन की बिखर गई है शायद,
जीवन अस्तित्व ही दाँव पे लगी हो सारी।

एक मानव रहता है उस बिटिया के अन्दर,
सोच विस्तृत उसके भी हर मानव के जैसे,
शक्ति उसमे भी कुछ हासिल कर लेने की शायद,
अस्तित्व उसकी फिर क्युँ वश मे तुम्हारे।

कल्पनाशीलता खोई दहलीज के अन्दर,
अंकुश लग गई हों विचारों पर बिटिया के जैसे,
अभिव्यक्ति की शक्ति कुम्हलाई है उसकी शायद,
बाँध दिए गए है नथ जैसे नथुने में सारे।

झांकने दो बिटिया को भी दहलीज के बाहर,
साँसे खुल के उसे भी लेने दो नर मानव जैसे,
अभिव्यक्त पूर्ण खुद को कर पाएगी वो तब शायद,
अस्तित्व स्वतंत्र बना निखरेगी जग मे सारे।

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