शायद हम कहीं मिल चुके हैं पहले.........!
वही स्वप्निल झील सी नीली आँखें,
मदमाई अलसाई झुकी हुई सी पलकें,
काले-काले इन नैनों में नींद के पहरे,
जिक्र बादलों का कर लूँ तुमको प्रेयसी कहने से पहले।
शायद हम कहीं मिल चुके हैं पहले.........!
वही होठ अधखुले दो पंखुड़ियाँ से,
लरजते, कांपते, शबनम की बूंदों में डूबे,
लालिमा इन पर सूरज की किरणों के,
जिक्र गुलाब का कर लूँ तुमको प्रेयसी कहने से पहले।
शायद हम कहीं मिल चुके हैं पहले.........!
वही चेहरा चांदनी में धुला आभामय,
हसीन नूर सा रेशमी अक्श मुख पर लिए,
अक्श रुहानी जैसे दीप जली मन्दिर में,
जिक्र पूजा का कर लूँ तुमको प्रेयसी कहने से पहले।
शायद हम कहीं मिल चुके हैं पहले.........!
वही स्वप्निल झील सी नीली आँखें,
मदमाई अलसाई झुकी हुई सी पलकें,
काले-काले इन नैनों में नींद के पहरे,
जिक्र बादलों का कर लूँ तुमको प्रेयसी कहने से पहले।
शायद हम कहीं मिल चुके हैं पहले.........!
वही होठ अधखुले दो पंखुड़ियाँ से,
लरजते, कांपते, शबनम की बूंदों में डूबे,
लालिमा इन पर सूरज की किरणों के,
जिक्र गुलाब का कर लूँ तुमको प्रेयसी कहने से पहले।
शायद हम कहीं मिल चुके हैं पहले.........!
वही चेहरा चांदनी में धुला आभामय,
हसीन नूर सा रेशमी अक्श मुख पर लिए,
अक्श रुहानी जैसे दीप जली मन्दिर में,
जिक्र पूजा का कर लूँ तुमको प्रेयसी कहने से पहले।
शायद हम कहीं मिल चुके हैं पहले.........!
No comments:
Post a Comment