Saturday, 26 March 2016

तुम दीप जलाने ना आई

तुम दीप जलाने ना आई, प्राणों का आधार ना मिल पाया!
हृदय अरकंचन के पत्तों सा, जज्बात बूँदों सा बह आया!

प्रज्जवलित सदियों से एक दीप ह्रदय में,
जलता बुझ-बुझ कर साँसों की लौ मेंं,
नीर हृदय के लेकर जल उठता धू-धू कर मन में,
सूखे हैं अब वो नीर बुझ रहा दीप इस हिय में ।

तूम आ जाते जल उठता असंख्य दीप जीवन में,
तुम दीप जलाने ना आई, प्राणों का आधार ना मिल पाया।

निर्झर नीर जज्बातों का बह रहा चिर निरंतर,
रुकता है ये कब अरकंचन के पत्तों पर,
अधूरी प्यास हृदय की प्यासी सागर के इस तट पर,
आकुल प्राणों के कण-कण किसकी आहट पर।

तुम आ जाते जल उठता दीप हृदय के इस तट पर,
तुम दीप जलाने ना आई, प्राणों का आधार ना मिल पाया।

हृदय अरकंचन के पत्तों सा, जज्बात बूँदों सा बह आया।

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