Saturday, 19 March 2016

घर सपनों के बना लेता मै भी

गर सपने अपने मिल जाते तो घर एक बना लेता मैं भी.......!

सपना उस प्यारे से घर का संजोए वर्षों से इस मन में,
इन्तजार करती है नित ये आँखें वर्षों से उन हसीन सपनों के,
गर मिल जाते वो सपने, चुन-चुन कर रख लेता उनको प्रांगण में,
छोटा सा घर एक बना लेता सपनों के मैं भी तब इस जीवन में......!

मेरे सपने बड़े सरल सीधे-सादे तामझाम से परे........!

मैं, मेरा एकाकीपन, मेरी तन्हाई, मेरी तृष्णगी सपनों मे साथ मेरे,
साथ परछाई सी सपनों मे तुम चलती हो पीछे पीछे मेरे,
मेरी इच्छाएं, आशाएँ, भावनाएं, कल्पनाएं वशीभूत सपनों के मेरे,
घर की इन चार दीवारों पर अंकित हों केवल सपन-सुनहरे मेरे।

दूर-दूर तक गम की बूंदे छलकती कभी ना इन नयनों में,
जीवन मरण, मिलन-बिछड़न का भय ना होता इस जीवन में,
साथ छोड़ प्यारा सा अपना दूर ना जाता इस जीवन से,
विरह की दुखदाई वेला धुली होती प्रीत की विविध रंगो से।

आशाएँ ही आशाएँ होती जीवन में निराशा कही दम तोड़ती,
रौशनी के उजाले फैले दूर तक होते अंधेरे कही घुटकर दम तोड़ते,
विश्वास हर दिल में होता, सच्चाई के आगे जमाना झुकता,
छल, कपट, द्वेष, विषाद, क्लेश से दूर हरपल मानव का जीवन होता।

ये मेरे सपने हैं बड़े सरल सीधे-सादे से तामझाम से परे........!

गर ये सपने अपने मिल जाते तो दुनियाँ ऩई बसा लेता मैं भी....!

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