आहिस्ता आहिस्ता उम्र की किस कगार पर,
खीच लायी है मुझको ये जिन्दगी!
यौवन का शिला बर्फ सा गल गया,
चाहतों का पंछी तोड़ पिंजड़ा उड़ गया,
आशाओं का दीपक बिन तेल बुझ रहा,
जिन्दगी के किस मुकाम पर आज मैं आ गया।
आहिस्ता आहिस्ता पिघलता रहा ये आसमाँ,
बूँदों सी बरसती रही ये जिन्दगी।
जोश पहले सी अब रही नहीं,
उमंग दिलों में अब कहीं दिखती नहीं,
उन्माद मन की कहीं गुम सी गई,
कुछ कर गुजरने की तमन्ना दिल मे ही दब रही ।
आहिस्ता आहिस्ता कट रहा धूँध का ये धुआँ,
राख बन कर सिमट रही ये जिन्दगी।
खीच लायी है मुझको ये जिन्दगी!
यौवन का शिला बर्फ सा गल गया,
चाहतों का पंछी तोड़ पिंजड़ा उड़ गया,
आशाओं का दीपक बिन तेल बुझ रहा,
जिन्दगी के किस मुकाम पर आज मैं आ गया।
आहिस्ता आहिस्ता पिघलता रहा ये आसमाँ,
बूँदों सी बरसती रही ये जिन्दगी।
जोश पहले सी अब रही नहीं,
उमंग दिलों में अब कहीं दिखती नहीं,
उन्माद मन की कहीं गुम सी गई,
कुछ कर गुजरने की तमन्ना दिल मे ही दब रही ।
आहिस्ता आहिस्ता कट रहा धूँध का ये धुआँ,
राख बन कर सिमट रही ये जिन्दगी।
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