Sunday, 13 March 2016

झीलों के झिलमिल दर्पण में वो

नजरों मे वो, झीलों के झिलमिल दर्पण मे वो।

नजरों में हरपल इक चेहरा वही,
चारो तरफ ढूढूा करूँ पर दिखता नहीं,
झीलों के झिलमिल दर्पण मे वो,
देखें ये नजरें पर हो ओझल सी वो।

धुआँ-धुआँ वो अक्स, धूँध मे गुम हो जाए वो।

जगी ये अगन कैसी दिल में मेरे,
ख्यालों मे दिखता धुआँ सा अक्स सामने,
जाने किस धूँध में हम चलते रहे,
हर तरफ ख्यालों की धूँध मे खोया किए।

मन में वो, मन की खामोश झील में गुम सी वो।

चाँदनी सी बादलों में वो ढ़लती रहे,
झिलमिल सितारों मे उनको हम देखा करें,
आते नजर हो झीलो के दर्पण में तुम,
अब तो नजरों में तुम ही हो, जीवन में तुम।

नजरों मे तुम हो, झीलों के झिलमिल दर्पण मे तुम। 

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