ढ़लता सांध्य गगन सा जीवन!
क्षितिज सुधि स्वप्न रँगीले घन,
भीनी सांध्य का सुनहला पन,
संध्या का नभ से मूक मिलन,
यह अश्रुमती हँसती चितवन!
भर लाता ये सासों का समीर,
जग से स्मृति के सुगन्ध धीर,
सुरभित हैं जीवन-मृत्यु तीर,
रोमों में पुलकित कैरव-वन !
आदि-अन्त दोनों अब मिलते,
रजनी दिन परिणय से खिलते,
आँसू हिम के सम कण ढ़लते,
ध्रुव सा है यह स्मृति का क्षण!
क्षितिज सुधि स्वप्न रँगीले घन,
भीनी सांध्य का सुनहला पन,
संध्या का नभ से मूक मिलन,
यह अश्रुमती हँसती चितवन!
भर लाता ये सासों का समीर,
जग से स्मृति के सुगन्ध धीर,
सुरभित हैं जीवन-मृत्यु तीर,
रोमों में पुलकित कैरव-वन !
आदि-अन्त दोनों अब मिलते,
रजनी दिन परिणय से खिलते,
आँसू हिम के सम कण ढ़लते,
ध्रुव सा है यह स्मृति का क्षण!
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