भीड़ मे इस दुनियाँ की,
एकाकी सा भटकता मेरा मन......
तम रात के साए में,
कदमों के आहट हैं ये किसके,
सन्नाटे को चीरकर,
बज उठे हैं फिर प्राण किसके।
चारो तरफ विराना,
फिर धड़कनों में बजते गीत किसके,
मन मेरा जो आजतक मेरा था,
अब वश में किस कदमों की आहट के।
टटोलकर मन को देखा तब जाना...
वो तो मेरा एकाकी मन ही है
भटक रहा है जो इस रात के विराने में,
वो तो हृदय की गति ही मेरी है,
धड़क रही जो बेलगाम अश्व सी अन्तः में।
भीड़ मे इस दुनियाँ की,
कदमों के आहट हैं ये किसके,
सन्नाटे को चीरकर,
बज उठे हैं फिर प्राण किसके।
चारो तरफ विराना,
फिर धड़कनों में बजते गीत किसके,
मन मेरा जो आजतक मेरा था,
अब वश में किस कदमों की आहट के।
टटोलकर मन को देखा तब जाना...
वो तो मेरा एकाकी मन ही है
भटक रहा है जो इस रात के विराने में,
वो तो हृदय की गति ही मेरी है,
धड़क रही जो बेलगाम अश्व सी अन्तः में।
भीड़ मे इस दुनियाँ की,
एकाकी सा भटकता मेरा मन......
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