Sunday, 27 March 2016

आँचल तले खग का नीड़

आँचल तले बना लेता नीड़, खग एक सुन्दर सा....!

आँचल की कोर बंधी प्रीत की डोर,
मन विह्ववल, चंचल चित, चितवन चितचोर,
लहराता आँचल जिया उठता हिलकोर,
उस ओर उड़ चला मन साजन रहता जिस ओर।

नीले पीले रंग बिरंगे आँचल सजनी के,
डोर डोर अति मन भावन उस गहरे आँचल के,
सुखद छाँव घनेरी उस पर तेरी जुल्फों के,
बंध रहा मन अाँचल में प्रीत के मधुर बंधन से।

हो तुम कौन? अंजान मैं अब तक तुमसे,
लिपटा है मन अब तक धूंध मे इस आँचल के,
लहराता मैं भी नभ में संग तेरे आँचल के,
प्रीत का आँचल लहरा देती तुम जो इस मन पे।

खग सा मेरा मन आँचल तेरा नभ सा,
लहराते नभ मे दोनो युगल हंसों के जोड़े सा,
घटा साँवली सी लहराती फिर आँचल सा,
आँचल तले बना लेता नीड़, खग एक सुन्दर सा।

1 comment:


  1. हो तुम कौन? अंजान मैं अब तक तुमसे,
    लिपटा है मन अब तक धूंध मे इस आँचल के,
    लहराता मैं भी नभ में संग तेरे आँचल के,
    प्रीत का आँचल लहरा देती तुम जो इस मन पे।

    अति सुन्दर।

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