Thursday, 10 March 2016

बाँध लूँ डोर जीवन की

तुझ संग बाँध लू मैं डोर कोई आज जीवन की!

मैं तम अंधियारा तू है दीपशिखा सी,
जल रहे है दीप कितने मन में चंचल सी,
धुआँ सा उठ रहा बादलों में जाने कैसी,
इन बादलों संग बाँध लू मैं डोर जीवन की।

आँचलो मे सज रहे हैं रंग जीवन के,
नयनो मे चिंगारियाँ जल रहे खुशियों के,
दीप आशा का जला लूँ मैं इस मन के,
इन आँचलों संग बाँध लू मैं डोर जीवन के।

आस दिल की है तुम्हारी राह में मेरी,
आँसुओं में ढ़ल रही जीवन की ये डोरी,
आँसुओं से मैं जलाऊँ दीप डेहरी की,
इन आँसुओं संग बाँध लू मैं डोर जीवन की।

झंकार सी हो रही मंद सांसों में अब,
घुँघरुओं सी बज रही इस फिजाओं में अब,
पायल कई बज उठे साथ मन मे अब,
इन झंकारों संग बाँध लू मैं डोर जीवन की।

तुझ संग बाँध लू मैं डोर कोई आज जीवन की!

No comments:

Post a Comment