Sunday, 24 January 2016

नैनों की पनघट

नैनों की तेरे पनघट पर,
मधु हाला प्यासा पथिक पा लेता,  
प्यास बुझाने जीवन भर की,
सुधि नैन पनघट की फिर फिर लेता।

नैनों की इस पनघट में,
पथिक देखता आलोक प्रखर सा,
दो घूँट हाला की पाने को,
सर्वस्व जीवन घट न्योछावर कर देता।

नैनों की इस पनघट तट पर,
व्यथित हृदय पीर पथिक का रमता,
विरह की चिर नीर बहाकर,
पनघट तट अश्रुमय जलमग्न कर जाता।

नैनों की इस मृदुहाला में,
कण कण पनघट का डूब जाता,
अनमिट प्यास पथिक की पर,
नैन पनघट ही परित्राण जीवन का पाता।

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