आज फिर गहराई से देखा हमनें हाथो को,
मध्य अवस्थित दो समानांतर रेखाओं को,
मेरा विवेक मजबूर हो गया पुनःविचार को,
मस्तिष्क व हृदय रेखा जाती विपरीत क्युँ?
शायद मष्तिष्क सोचता है हृदय के विपरीत,
मष्तिष्क का निर्णय विवेचनाओं पर आश्रित,
हृदय का निर्णय होता संवेदनाओं पर केन्द्रित,
दो विपरीत विचार-धाराएँ एक जगह स्थित!
दो विपरीत धाराएँ मिलके चलाती जीवन एक
सामंजस्य द्वारा जीवन के निर्णय लेता अनेक,
तीसरी रेखा जीवन की चल पाती इनके विवेक,
रेखाओं का सम्मेलन बस करता मालिक एक!
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