पूछे उस विरहन से कोई!
क्या है विरह? क्या है इन्तजार की पीड़ा?
क्षण भर को उस विरहन का हृदय खिल उठता,
जब अपने प्रिय की आवाज वो सुनती फोन पर,
उसकी सिमटी विरान दुनियाँ मे हरितिमा छा जाती,
बुझी आँखों की पुतलियाँ में चमक सी आ जाती,
सुध-बुध खो देती उसकी बेमतलब सी बातों मे वो,
बस सुनती रह जाती मन मे बसी उस आवाज को ,
फिर कह पाती बस एक ही बात "कब आओगे"!
पूछे उस विरहन से कोई!
कैसे गिनती वो विरह के इन्तजार की घड़ियाँ?
आकुल हृदय की धड़कनें अगले ही क्षण थम जाती,
जब विरानियों के साए में, वो आवाज गुम हो जाती,
चलता फिर तन्हाईयों का लम्बा पहाड़ सा सिलसिला,
सूख जाते आँसू, बुझ जाती चमक पुतलियों की भी,
काटने दौड़ती मखमली मुलायम चादर की सिलवटें,
इन्तजार के अन्तहीन अनगिनत पल उबा जाते उसे,
सपनों मे भी पूछती बस एक ही बात "कब आओगे"!
पूछे उस विरहन से कोई!
कैसा है विरह के दर्द का इन्तजार भरा जीवन?
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