Tuesday, 19 January 2016

पनिहारिन की पीड़ा

इक भोली विरहन पनिहारिन,
पनघट तट पनिया भरन के बहाने,
कहती पीड़ा अपने मन की।

आयो नाही अबकी बरस अब तक पिया,
बितत ना बिताई अब दिन रतिया, 
कासे कहुँ पीड़ा अब मन की।

बबलु मुनिया के समझाऊँ दिन रतिया,
बाबुजी गइल विदेश हे बचवा,
व्यथा बचल बस अब मन की।

सास ससुर भइले अब बिलकुल अक्षम,
सुझत नही अब कुछ अँखियाँ,
बोझ बहुत बढ़ गईल जीवन की।

अबकी बरस जल्दी आ जा पिया जी,
पनिहारिन के तनिक समझी व्यथा,
साथ निभा जा अब आंगन की।

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