झांक रहा है सूरज दूर मुंडेड़ से पहाड़ के,
रंग पीला और गुलाबी आसमां पे डाल के।
बादलों में बिखेर जाती रश्मि प्रभा सतरंगी,
रूप सवाँरती धरा का देकर छटा अठरंगी।
सौन्दर्य आकाश के सँवारती विविध रंगों से,
मानो खेल रहा होली वो बादल के अंगो से।
हिमगिरि के शीष पे बिखर गई है किरण,
छिटक गई बर्फ की वादियों पर बन स्वर्ण।
कलियों ने स्वागत मे खोल दिए घूँघट सोपान,
कलरव करती पंछियों ने छेड़े हैं स्वागत गान।
ऐसी मधुर प्रभात की आभा मै भी निहार लूँ,
संग मेरे तू आ सजनी, प्रीत का नव हार लूँ।
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