शामें गुजर रही यादों की तन्हाईयों में,
संग तेरे गाए गजल जो उन लम्हों में,
डूबते हैं ख्याल, अब उन रुबाईयों मे,
लम्हा लम्हा तन्हा रह गई हैं शाम कीा
संग तेरे गाए गजल जो उन लम्हों में,
डूबते हैं ख्याल, अब उन रुबाईयों मे,
लम्हा लम्हा तन्हा रह गई हैं शाम कीा
मिश्री की डलियों सी अनकही बातें,
मासूम चेहरा मोहिनी मुस्कान समेटे,
नशीली आँखों पे झुकी तैरती पलकें,
संग गायी ग़ज़ल बन गई हैं शाम की।
जुल्फों की धुंध सी छाये काले बादल,
आसमाँ पे दूर उड़ता तुम्हारा आँचल,
पुकारता हुआ तुम्हारे हाथों का दामन,
चिलमन बन घटा सी छाती शाम की।
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