संबंध आपसी विश्वास और समर्पण की मजबूत नींव पर प्रगाढ होते और बढ़ते है। एहसास, जज्बात, संवेदना इन्हें और मजबूत बनाते हैं। समर्पण समय की मांग करता है और निजी उपलब्धियों की कु्र्बानी भी।
विश्वास पनपते है एहसासों के दामन मे, संवेदनाओं की कोख मे विश्वास छुपा होता है। जब एहसास और संवेदनाए मर चुकी हों, तब विश्वास की उम्मीद भी नही दिखती।
आज की अँधी दौर में इन्सान की मंजिल जीवन में कुछ हासिल कर लेना है सिर्फ, जज्बात और संवेदनाएँ दिखावे के है मात्र। अपने सहकर्मी को हम झूठी तसल्ली या झूठे दिखावे के अभिवादन कर बनावटी हसी दिखा देना मात्र संवेदना नही है।
निजी जीवन के निजी संबंध इन झूठे एहसासों से कही अधिक संवेदनशील होते हैं।
हमारी जीवन में कुछ पाने की चाह में जब हम निजी संबंधों को कुचलने लगते है तब ये संबंध स्वतः ही मर जाते हैं, कहीं कोई शोर-शराबा नही होता, बस आत्मा मर जाती है एक।
संबंध शायद इन्ही वजहों से टूटते हैं। आज की असफल निजी पारिवारिक संबंथों के पीछे यही है शायद। मन की कराह पीड़ा रातों को हमे जगने पर मजबूर करते है।
No comments:
Post a Comment