व्यक्तित्व धीर गंभीर हो, बने पेड़ सा ऊँचा,
आँधियों में भी हो खड़ा किए सिर ऊँचा,
उगते डूबते सूरज चाँद दे तुझको आशीष,
ऋतु बदलें, मेघ उमड़े तू न कभी पसीज।
व्यक्तित्व बने सन्तुलित शान्त धीर गंभीर,
विनम्रता की हरियाली से रहे आच्छादित,
अन्तस् में इसके उमरती रहे ममता भावना,
देश, समाज, जनकल्याण हो तेरी साधना।
पेड़ की मर्मरित पत्तियों सा हो कोमल हृदय,
नम्रता और विनम्रता करे इनके मार्ग प्रशस्थ,
तू बार-बार जा झूल प्रतिकूल हवाओं संग,
पर सफलता का श्रेय पैरों-तले मिट्टी को दे।
शख्शियत धीर गंभीर बने पेड़ सा बढ़ता रहे,
परिस्थितियाँ प्रतिकूल भी इन्हे हिला ना सकें,
व्यक्तित्व की मजबूत जड़ें दूर धरती में रहे,
श्रेय तेरे मान अभिमान का समाज लेता रहे।
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